अष्टछाप के सबसे सर्वाश्रेस्थ कवि सूरदास का जन्म सन 1478 में आग्रा से मथुरा जाने वाली सड़क के पास स्थित रुनकता गाव में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान दिल्ली के निकट सिही नामक गाव को भी मानते है। सूरदास के पिता का नाम रामदास सरश्वत था। सूरदास ने कृष्णा की लीलाओं का इतना मनोहरिक वर्णन किया है जो आँखों के सामने प्रत्यक्ष देखे बिना सम्भव ही नहि है। सूरदास बचपन से हाई विरक्त हो गए थे और गौघाट में रहकर कृष्णा की लीलाओं का गुणगान करते थे।
जब सूरदास ने वल्लभाचार्य जी को एक स्वरचित पद गा कर सुनाया तो वल्लभाचार्य इनके गुरु बन गए। वल्लभाचार्य ने सूरदास को कृष्णा की लीलाओं का गन करने का सुजाव दिया और ये कृष्णा की लीलाओं का गान करने लगे। वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को गोवर्धन पर बने श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तन करने का भार सोप दिया था।
सूरदास जी की मृत्यु सन 1538 के लगभग गोवर्धन के पास परसौली नामक गौव में हुई थी।
सूरदास जी के द्वारा पाँच ग्रंथ लिखे गए है।
- सुरसागर
- सरसरावली
- साहित्य-लहरी
- नल-दमयंती
- ब्याहली