Hello! Dosto, aap sabka Alertsvala.com firse swagat hai. Me aaj apko Real Success Story in Hindi me bata ne vala hu. Aap is story of success in Hindi me padhkar motivate ho sakte hai, aur aap bhi apne jivan me bade bade kam kar sakte hai jisase age jakar apke upar bhi ek success Story bane.
Dhirubhai Ambani Success Story in Hindi

बड़ा सोचो जल्दी सोचो और आगे की सोचो क्योंकि विचारों पर किसी का भी एक अधिकार नहीं है, ऐसा कहना है.
धीरूभाई अंबानी का जिन्होंने एक साधारण परिवार से दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में से एक होने का संघर्ष बना रास्ता तय किया.
बहुत कम लोग जानते होंगे कि धीरुभाई का वास्तविक नाम धीरजलाल गोवर्धनदास अंबानी है धीरुभाई का जन्म 28 दिसंबर 1935 को गुजरात के चोर गांव में हुआ था.
हाई स्कूल में ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और उसके बाद पकोड़े बेचना शुरू कर दिया धीरुभाई का मानना था कि पढ़ाई का कोई संबंध नहीं है यह जरूरी नहीं कि दुनिया में एक पढ़ा लिखा इंसान ही पैसे कमा सकता है.
कुछ सालों तक घूम घूम कर पकौड़े बेचने के बाद सन 1948 में 16 साल की उम्र में भी अपने भाई रमणिकलाल की सहायता से अपने एक दोस्त के साथ एवं उनके आंसर काम करने चले गए एजेंटों ने पहले पेट्रोल पंप पर काम किया.
इसे पढ़े👉🏻 Sukanya Yojana Details: Eligibility, Interest Rate, Benefits
फिर कुछ दिनों बाद उसी कंपनी में लड़कियां पोस्ट पर ₹300 प्रति माह के वेतन पर काम करने लगे वह अपने दिन भर के काम के बाद भी कोई ना कोई पार्ट टाइम काम करते रहते थे।जिससे उनके साथियों में उनके पास सबसे ज्यादा पैसा था लेकिन फिर भी उनके दिमाग में कहीं ना कहीं रहता था कि उन्हें अगर अमीर बनना है तो अपना खुद का बिजनेस करना ही होगा और बिजनेस के लिए पैसे तो चाहिए होंगे.
कई जगह पर काम करने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने काम में कमी नहीं की और पूरी मेहनत और लगन से अपने दायित्वों को पूरा किया इसीलिए काम से खुश होकर कंपनी के मालिक ने उनका प्रमोशन एक मैनेजर की प्रतिक्रिया लेकिन थोड़े दिन उस काम को करने के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया और अपने वतन हिंदुस्तान चले आए.

क्योंकि उनके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था 1955 में उन्होंने ₹15000 लगाकर अपने चचेरे भाई चंपा के साथ मिलकर मसालों का निर्यात और पॉलिस्टर धागे के आयात का बिजनेस स्टार्ट किया उनकी मेहनत के दम पर अगले कुछ सालों में कंपनी का टर्नओवर ₹1000000 सालाना हो गया.
उस समय पॉलिस्टर से बने हुए कपड़े भारत में नए थे और यह सोती के मुकाबले लोगों द्वारा ज्यादा पसंद किया जाने लगा क्योंकि यह सस्ता और टिकाऊ था और स्क्रीन चमक होने के कारण पुराने होने के बाद भी यह नया जैसा दिखाई देता था और लोगों द्वारा पसंद किए जाने की वजह से जल्दी उनका मुनाफा कई गुना बढ़ गया कुछ वर्षों के बाद धीरूभाई अंबानी और चमक लाने की व्यवसायिक सारी समाप्त हो गई.
क्योंकि दोनों के स्वभाव और व्यवहार करने के तरीके बिल्कुल अलग थे लेकिन धीरुभाई ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देखते-देखते उन्होंने समय के साथ चलते हुए टेलीकॉम एनर्जी और व्यापार में कदम रखती हूं.
आप उनकी सफलता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि आज धीरुभाई के कंपनी में 90 हजार से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं और भारत में उनकी कंपनी आज भी टॉप पर है दोस्तों अगर समय की मांग के अनुरूप आपने अपने आपको डाल दिया ना तो कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.
6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी ने दुनिया से विदा ली लेकिन उनके स्वभाव और विनम्रता की वजह से आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है धीरुभाई का कहना है जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं वह पूरी दुनिया को जीत सकते हैं.
Ratan Tata Success Story in Hindi

अंग्रेजी में एक कहावत है सक्सेस इज द बेस्ट रिवेंज मतलब सफलता सबसे अच्छा बदला है.
आज मैं टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा के जीवन के एक ऐसे पड़ाव के बारे में बात करने जा रहा हूं जिसमें उन्होंने अपनी सफलता से अपने अपमान का बदला लिया था मुस्कान को शुरू करने से पहले मैं आपको रतन टाटा के बारे में थोड़ा सा बता देता हूं।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था. टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा के पोते हैं 1991 में उन्हें टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया गया.
उसके बाद रतन टाटा के देखरेख में ही टाटा कंसलटेंसी सर्विस की शुरुआत हुई उसके बाद उन्होंने काटा जाए टाटा मोटर्स टाटा स्टील जैसी कंपनियों को शिखर पर पहुंचाया भारत सरकार ने रतन टाटा को दो बार पदम विभूषण द्वारा सम्मानित किया यह सम्मान देश के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान टाटा का 100 देशों में फैला हुआ है और उनकी कंपनी में करीब 6:30 लाख लोग काम करते हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि वह अपने फायदे का 6:00 पर्सेंट चैरिटी में दान कर देते हैं। दोस्त मुझे उम्मीद है कि आप रतन टाटा के बारे में थोड़ा सा जान गए होंगे चलिए आप बात करते हैं.
उस घटना के बारे में जिसमें रतन टाटा ने अपने अपमान का करारा जवाब अपनी सफलता से दिया था बात उस समय की है इंडिका कार बाजार में निकाली थी रतन टाटा का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी लेकिन इंडिका कार को मार्केट में रिस्पांस अच्छा नहीं मिला जिसके कारण कुछ सालों बाद टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी थी टाटा मोटर्स के साझेदारों ने रतन टाटा को कार व्यापार में हुए नुकसान की पूर्ति के लिए कंपनी को बेचने का सुझाव दिया और ना चाहते हुए भी रतन टाटा को अपने दिल पर पत्थर रखकर यह काम करना पड़ रहा था.

टाटा मोटर्स के साझेदारों के साथ अपनी कंपनी बेचने का प्रस्ताव फोर्ड कंपनी के पास ले गए जिसका हेड क्वार्टर अमेरिका में फोर्ड कंपनी के साथ रतन टाटा और उनके पार्टनर की मीटिंग करीब घंटे तक चली बोर्ड के चेयरमैन बिल कोर्ट ने रतन टाटा के साथ बहुत-बहुत सपरिवार किया और बातों ही बातों में यह कह दिया कि जब तुम्हें इस बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो फिर तुमने इस कार को लांच करने में इतना पैसा क्यों लगाया हम तुम्हारी कंपनी को खरीद कर बस तुम पर एहसान कर रहे हैं.
यह बात रतन टाटा को दिल पर लग गई वह रातों-रात अपने पार्टनर के साथ उस दिल को छोड़ कर वापस चले आए विलफूड की उन बातों को रतन टाटा भुला नहीं पा रहे थे वह उनके दिमाग में बार-बार आ जा रही थी उसके बाद रतन टाटा ने अपनी कंपनी किसी को भी ना भेजने का निर्णय किया उन्होंने अपनी पूरी जी जान लगा दी और देखते ही देखते टाटा की कार की बिजनेस एक अच्छी खासी लाए में आने लगा जिससे उन्हें बहुत फायदा हुआ वहीं दूसरी तरफ फोर्ड कंपनी ब्लॉक में जा रही थी.
इसे पढ़े👉🏻 Dr subramanian swamy twitter and Biography know more
और सन 2008 के अंत तक दिवालिया होने के कगार पर थी उस समय दतनता हटाने और कंपनी के सामने उनकी लग्जरी कार जगुआर और लैंड रोवर के खरीदने का प्रस्ताव रखा और बदले में फोर्ड को अच्छा खासा था देने के लिए कहा जो कि बिल्कुल पहले से ही जैगुआर और लैंड रोवर की वजह से घाटा झेल रहे थे.
उन्होंने यह प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया बिल्कुल उसी तरह अपने साझेदारों के साथ टाटा समूह के मुख्यालय पर पहुंचे जैसे कभी रतन टाटा बोर्ड से मिलने उनके मुख्यालय गए थे और लैंड रोवर 93100 करो टाटा समूह के अधीन होगा.
इस बार भी अपने वही बात दोहराई उन्होंने मीटिंग में गई थी इस बार बार थोड़ी पॉजिटिव थी बोर्ड ने कहा कि आप हमारी कंपनी हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं.
जैगुआर और लैंड रोवर टाटा समूह का हिस्सा है और बाजार में आगे बढ़ रहा है रतन टाटा अगर चाहती तो उसी मीटिंग में ही करारा जवाब दे सकते थे, लेकिन रतन टाटा अपने सफलता के नशे में चूर नहीं थी यही वह कौन है जो एक सफल और एक महान इंसान के बीच का अंतर दर्शाता है.

जबकि अपमानित होता है तो उसका परिणाम होता है लेकिन महान लोग अपने खुद का उपयोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं।
Sachin Tendulkar Success Story in Hindi
दोस्तों भारत में क्रिकेट को एक खेल ही नहीं बल्कि एक धर्म का दर्जा दिया गया है और उस घर में सचिन की तरह पूजे जाते हैं दोस्तों सचिन युवा क्रिकेटर है.

जिसने भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई दी और क्रिकेट घर घर तक पहुंचा दिया एक समय ऐसा था कि
सचिन के आउट होते ही आधा भारत टीवी बंद कर देता थाकरें तो सचिन के आस पास भी कोई नहीं भटकतासबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड हो या शतक मारने का या फिर चौका लगाने का ही क्यों ना हो सचिन हर रिकॉर्ड की सबसे आगे है.
ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि अब तक करो जब सचिन बैटिंग कर रहा है क्योंकि भगवान भी उस समय उनकी बैटिंग देखने में व्यस्त होते हैं सचिन भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले खिलाड़ी हैं.
इसके अलावा राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है सचिन एक अच्छे खिलाड़ी होने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी हैं.
हर साल 200 बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी के लिए अपना लेना कि एक गैर सरकारी संगठन में चलाते हैं बिना आपका समय खराब किए हम सचिन तेंदुलकर के बचपन से लेकर क्रिकेट में उनकी अद्भुत सफलता तक के सफर को शुरू से जानते हैं.
सचिन रमेश तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 को हुआ था. उनके पिता का नाम था जो एक लेखक और थे. और उनकी मां का नाम जो इंश्योरेंस कंपनी में काम करती थी यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि सचिन तेंदुलकर अपने पिता रमेश तेंदुलकर की दूसरी पत्नी के पुत्र हैं.
रमेश तेंदुलकर की पहली पत्नी से तीन संतान हुई अजीत नितिन और सविता जो कि तीनों सचिन से बड़े हैं सचिन तेंदुलकर का नाम उनके पिता रमेश तेंदुलकर ने अपने प्रिय संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था.
सचिन को क्रिकेट का शौक बचपन से ही है लेकिन शुरू से ही वह बहुत ही शरारती बच्चों में गिने जाते थे जिसकी वजह से अक्सर स्कूल के बच्चों के साथ उनका झगड़ा होता रहता था सचिन की शर्तों को कम करने के लिए उनके बड़े भाई अजीत ने 1984 में क्रिकेट एकेडमी ज्वाइन कराने का सोचा और रमाकांत आचरेकर के पास लेकर गए.
रमाकांत आचरेकर उस समय के प्रसिद्ध हो जाते थे लेकिन सचिन पहली बार उनके सामने अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और आचरेकर ने उन्हें खाने से मना कर दिया लेकिन बड़े भाई अजीत के रिक्वेस्ट पर आज से करने फिर से एक बार सचिन का मैच देखा लेकिन इस बार वह सचिन को एक पेड़ के पीछे से छूट कर देख रहे थे बहुत अच्छा मैच खेला था.

जिससे उन्हें पता चल गया कि सचिन केवल हमारे सामने खेलने में असहज महसूस कर रहे हैं और उन्होंने सचिन को अपने अकैडमी में ले लिया और क्रिकेट दिखाना शुरू कर दिया आगे चलकर आचरेकर को सचिन के पैर पकड़ने के तरीके से प्रॉब्लम थी.
सचिन को पकड़ते थे और आज लेकर के हिसाब से इस तरह से बैठकर नहीं लगाए जा सकते थे इसीलिए उन्होंने सचिन को ऐड को थोड़ा ऊपर पकड़कर खेलने का सलाह दिया लेकिन इस बदलाव से सचिन कंफर्टेबल नहीं फील कर रहे थे और इसीलिए उन्होंने रिक्वेस्ट किया कि उन्हें नीचे बैठ कर दे दरअसल बचपन में सचिन अपने बड़े भाई के बैट से खेलते थे और उनके छोटे छोटे हाथों से बड़ी बैठ को पकड़ने में बहुत दिक्कत होती थी और वह उसको संभालने के लिए बहुत नीचे से करते थे वहीं से उन्हें बैठ को नीचे पकड़ने की आदत हो गई.
इसे पढ़े👉🏻 Family Status in Hindi for Whatsapp
आचरेकर तेंदुलकर की बातें बहुत ही प्रभावित थे और इसीलिए उन्होंने सचिन को श्रद्धा आश्रम विद्या मंदिर में पढ़ाई के लिए शिफ्ट होने के लिए कहा क्योंकि वहां पर क्रिकेट की बहुत अच्छी टीम थी और उन्होंने देखा था कि सचिन को अगर एक अच्छा माहौल मिले तो वह कुछ भी कर सकते हैं.
तेंदुलकर ने भी अपने कोच के गाने पर उस स्कूल में एडमिशन ले लिया और एक प्रोफेशनल टीम के साथ क्रिकेट खेलने लगे. वहां पढ़ाई के साथ-साथ शिवाजी पार्क में रोज सुबह शाम असली घर की देखरेख में प्रैक्टिस करते थे.
सचिन को प्रैक्टिस कराते समय उनके कोच स्टंपर एक सिक्का रख देते थे और दूसरे खिलाड़ियों को कहते थे कि वह सचिन को कॉलिंग करें जो खिलाड़ी सचिन को आउट कर देगा सिक्का उसका अगर सचिन को कोई भी खिलाड़ी आउट ना कर सका तो सिक्का सचिन का होता था.
सचिन के पास आज भी उनमें से 13 सिक्के हैं जो सबसे बड़ा इनाम मानते हैं सचिन के मेहनत और प्रैक्टिस के दम पर उनका खेल बहुत जल्दी निकल गया और वह लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गया उन्होंने अपनी स्कूल टीम की तरफ से मैच खेलने के साथ ही.
साथ मुंबई के प्रमुख लोगों से भी खेलना शुरू कर दिया शुरू शुरू में सचिन को पोलिंग का बहुत शौक था जिसकी वजह से 18 सो 87 में 14 साल की उम्र में बॉलिंग सीखने के लिए मद्रास के ऑस्ट्रेलिया के पेस फाउंडेशन गए जहां ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज डेनिस लिली ट्रेनिंग देते थे लेकिन उन्होंने सचिन को बैटिंग सीखने का सुझाव दिया क्योंकि वह चैटिंग में अच्छा परफॉर्मेंस कर रहे थे और सचिन ने भी उसकी बात मान ली और अपनी बैटिंग की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगी.

बता दूं कि ले ली ने जिन खिलाड़ियों को तेज गेंदबाज बनने से मना किया उसमें सौरव गांगुली भी शामिल थे.
कुछ महीनों के बाद बेस्ट जूनियर अवार्ड मिलने वाला था जिसमें 14 साल के सचिन की बड़ी दावेदारी मानी जा रही थी लेकिन उन्हें इनाम नहीं मिला बहुत दुखी हुए और तभी उनका मनोबल बढ़ाने के लिए पूर्व भारतीय बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने उन्हें अपने पेट की जोड़ी दे दी 10 साल बाद टेस्ट करके विश्व रिकार्ड को पीछे छोड़ने के बाद इस बात का जिक्र किया था.
उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए उस समय प्रोत्साहन का सबसे बड़ा स्रोत था 14 नवंबर 1987 को रणजी ट्रॉफी के लिए भारत के घरेलू टूर्नामेंट में खेलने के लिए किया गया लेकिन वह में इस्तेमाल के लिए 1 साल बाद लेकिन वह अंतिम 11 में किसी भी मैच में नहीं चुने गए.
उनका इस्तेमाल उस पूरी सीरीज में केवल रिप्लेसमेंट पिलर के लिए किया गया था 1 साल बाद 11 दिसंबर 1988 को सिर्फ 15 साल और 232 साल की उम्र में तेंदुलकर ने अपने कैरियर की शुरुआत.
इसे पढ़े👉🏻 How to create Facebook group for business
मुंबई की तरफ से खेलते हुए गुजरात के खिलाफ की इस मैच में उन्होंने नाबाद शतक बनाया और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में अपने पहले ही मैच में शतक बनाने वाले सबसे युवा खिलाड़ी बने और फिर 1988 के बीच में मुंबई की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बने उसके बाद भी उनकी शानदार फॉर्म जारी रही और उन्होंने दिल्ली के खिलाफ ट्रॉफी में भी नाबाद शतक बनाया.
उस समय विशेष भारत के लिए खेल रहे थे सचिन तेंदुलकर ने रणजी दलीप और ईरानी ट्रॉफी में अपने पहले ही मैच में शतक जमाया था और ऐसा करने वाले भारत के एकमात्र बल्लेबाज उनका रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया सचिन के जादुई खेल को देखते हुए.
16 साल की उम्र में उनका सिलेक्शन भारतीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम में किया गया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनके सिलेक्शन का राज सिंह डूंगरपुर को दिया जाता है.

जो उस समय के थे 10 नवंबर 1989 में सिर्फ 16 साल और 205 दिनों की उम्र में कराची में पाकिस्तान के खिलाफ अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की.
इससे पहले भी भारतीय चयन समिति ने वेस्टइंडीज के दौरे के लिए सचिन की इच्छा जताई थी लेकिन वह नहीं चाहते थे कि सचिन को इतनी जल्दी वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों का सामना करना पड़े और इसीलिए उन्होंने इंडिया क्रिकेट टीम की तरफ से पाकिस्तान के खिलाफ पहला मैच खेलते हुए 15 रन बनाए.
इस मैच में सचिन के नाम पर गिर गई थी जिसकी वजह से उनकी नाक से खून आ गया लेकिन फिर भी नहीं और पूरा मैच खेला उसमें उन्होंने थी सचिन ने 1993 में अपना पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड का टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के मुकाबलों में भी सचिन का प्रदर्शन और उन्होंने कहा कि सचिन को एक मैच में अपना पहला शतक लगाने के लिए इंतजार करना पड़ा था,
लेकिन एक बार में आने के बाद सचिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने जादुई बल्लेबाजी से क्रिकेट जगत की सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया सचिन एकमात्र खिलाड़ी हैं जिनके खाते में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक बनाने का विश्व रिकॉर्ड है 51 शतक बनाए हैं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोहरा शतक जड़ने वाले पहले खिलाड़ी हैं सबसे ज्यादा वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच खेलने वाले खिलाड़ी सचिन को क्रिकेट में उनकी अद्भुत योगदान के लिए उन्हें पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है.
1998 में राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया उसके बाद 1999 और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है.

2013 में भारतीय डाक विभाग ने जारी किया इस सम्मान से सम्मानित होने वाले 2014 में सचिन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले खिलाड़ी वनडे क्रिकेट में बल्लेबाजी करने के बाद 23 दिसंबर 2012 को 16 नवंबर 2013 को उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला 1995 में उन्होंने शादी की भी हैं.
जिनका नाम और अर्जुन और सरल स्वभाव के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है गुस्से में आकर कोई टिप्पणी करने की बजाय किसी टिप्पणी का जवाब देने में विश्वास रखते थे दोस्तों सचिन ने क्रिकेट में भगवान का दर्जा अपनी कोशिश से हासिल की.
Upar di gai sari jankari “Live Hindi Youtube Channel” or images “Google” se jutai gai hai. Aam logo ko padhne me aashani ho aur samaj paye isiliye in bhasha me translate ki gai hai.
मेरा नाम विकी है। में इसी तरह की हिंदी कहानिया , हिंदी चुटकुले और सोशल मीडिया से संबंधित आर्टिकल लिखता हु। यह आर्टिकल “Success Story in Hindi of Dhirubhai Ambani, Ratan Tata, Sachin Tendulkar” अगर आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और हमे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि में फॉलो करे।
धन्यवाद।❤️
Great Content! Thank you for sharing this kind of content!